Friday, 16 February 2018

संविदा कृषि भारतीय किसानों के लिए संजीवनी

कृषि की तीन मुख्य समस्याओं का समाधान है ठेके पर खेती
भारत में एक मुद्‌दा बहुत महत्वपूर्ण है कि कृषि को कैसे पुनर्जीवित किया जाए? प्रतिदिन औसतन 2000 किसानों द्वारा कृषि कार्य को त्यागना एवं कर्ज में डूबे किसानों का आत्महत्या करना भारतीय कृषि का काला अध्याय है। भारत में किसानों के पिछड़ेपन की मुख्य तीन वजह हैं । एक, जोत का आकार काफी छोटा होना अर्थात देश के 88 प्रतिशत किसान छोटे या सीमांत किसान हैं। उनके पास एक एकड़ से कम जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े हैं। जोत का आकार छोटा होने के कारण न तो व्यापक स्तर पर किसी फसल का उत्पादन हो पाता है और न ही अत्याधुनिक तकनीकों का लाभ मिल पाता है। दो, उनके द्वारा उपजाई गई फसलों की वास्तविक कीमत उनके बजाय बिचौलियों को मिलना। तीन, भारतीय कृषि मानसून आधारित होने के कारण जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।
ऐसे में नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित संविदा कृषि भारतीय किसानों के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। संविदा कृषि के अंतर्गत किसान एक समझौते के अंतर्गत किसी कृषि विपणन या आपूर्ति कंपनी के लिए उत्पादन का कार्य करता है। *भारत के कुछ राज्यों ने आंशिक तौर पर संविदा कृषि को अपनाया भी है,जिसके बेहतर परिणाम मिल रहे है। कितंु इसे अपनाने से पहले एक देशव्यापी आदर्श कानून की जरूरत है।* संविदा कृषि के अनेक फायदें हो सकते हैं, जैसे जोत का आकार बढ़ जाने से आधारभूत संरचना का विकास और इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता कि कोई किसान चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, उसे भूमिहीन नहीं होना पड़ता, क्योंकि कर्ज में डूबने के कारण ही किसान ज़मीन बेचते है। संविदा कृषि से फसल की कीमत पहले ही सुनिश्चित हो जाती है, जिससे उनके कर्ज में डूबने की आशंका न्यूनतम हो जाती है। किसानों को बीज, उर्वरक, मशीनरी और तकनीकी सलाह सुलभ कराई जा सकती है। यदि ठेके पर खेती वास्तव में किसानों के लिए इस हद तक न्यायसंगत और बढ़िया विकल्प है तो इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। चीन सहित कई देशों ने संविदा खेती को सफलता पूर्वक अपनाया है। ऐसे में बड़े पैमाने पर इसे अपनाने पर विचार क्यों नहीं किया जाना चाहिए?

Farmer suicides, debt, drought and heavy rains with ice balls of big sizes

Of the over 17 crores rural households in India, approx. 9 crores households are engaged in farming. The average farming family has five members, thereby near 45 crores people directly dependent on farming. However this farming community has been struggling in recent times, with farmer suicides, debt, drought and very recently heavy rains with ice balls of big sizez and also a lack of development a regular cause for debate and discussion.

Positive action in agriculture is therefore the need of the hour, with a pressing urgency to help curb issues that have devastated this essential sector and consequentially led to scant development in rural India.Nothing is happening to protect farmers from climatological vageries,as no research or no innovative idea/ discussions took place and most of the govt budget is for plant breeding,hybrid seeds,and other areas of research done in the laboratories but no efforts for these real pain causing and penniless making factors are done. Are we agricultural professionals so weak?

Get the markets right by strengthening and resorting to eNAM

Farmers of urad in Madhya Pradesh get Rs 25-26 for their produce, whereas farmers in  UP are getting over Rs 45 per kg.
Farmers in Punjab dump their potatoes on the streets in the absence of a reasonable price for them, prices in the neighbouring Delhi are in the region of Rs 15-20 per kg.  Such differences are the norm, not the exception, and creating the Indian farm crisis.

Above examples are falsifying stories,about claim of  the government telling us from time to time, that e NAM is a big success , but there is little evidence of it working.

The Government should have created several mandis for fruits & vegetables,in different parts of a city and ensured that these were not cartelised like Vashi and Azadpur. This, however, never happened, inspite of APMC-delisting of fruits & vegetables,there was no difference in the lives of farmers.

Here setting up of new mandis for fruits and vegetables was required to be done by providing free land, for creating new infrastructure.

Therefore, If agriculture has to do well, the government has to get the markets right  by  strengthening and resorting to eNAM and also by creating new infrastructure and payment system of mandis and terminal markets—deficiency payments are no substitute.